जगप्रभा

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बुधवार, 21 अगस्त 2013

66. रक्षाबन्धन' 2013


लाल बरामदे पर "आल्पना" बनाकर, आसन बिछाकर रक्षाबन्धन बनाया जाता है; मगर इस बार सुबह से ही वर्षा हो रही थी, छोटी दीदी को आज ही लौटना था और 'छोटी' को भी कहीं जाना था, सो, थोड़े शॉर्टकट के साथ रक्षाबन्धन मना...  







पिछले रक्षाबन्धन पर मैंने फेसबुक पर कुछ विचार लिखे थे, उन्हें अभी खोजकर निकाला:


जितना प्यार माँ अपने बेटे से, या पत्नी अपने पति से करती है, उससे कहीं ज्यादा प्यार एक बहन अपने भाई से करती है- हाँ, वह कभी प्रकट नहीं करती. 

मैंने अनुभव किया है कि अगर बहन की दिली दुआयें (वे बोलकर दुआयें नहीं देतीं) किसी के साथ हों, तो उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. 

बड़े बदनसीन होते हैं वे भाई, जो जाने-अनजाने में अपनी बहन के मन को चोट पहुँचा देते हैं. 

बहन अपने भाई से छोटा-सा उपहार पाकर कितना खुश होती है, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. 

मैं नहीं जानता, आज की पीढ़ी के भाई-बहनों के साथ ये बातें फिट बैठती हैं या नहीं, मगर मैं अपने बारे में जानता हूँ कि मेरी दोनों दीदीयों का मेरे प्रति जो प्यार है, वह मेरा "रक्षा कवच" है!

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