हम पहले यह साफ कर दें कि छायाकारी की तकनीकी जानकारी हमें नहीं है, लेकिन एक कलाप्रेमी होने के नाते हमें थोड़ा-बहुत यह अन्दाजा हो जाता है कि कब किस तरह से तस्वीर खींचनी चाहिए।
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कुछ दिनों पहले की बात है। हमने श्रीमतीजी को अपनी एक तस्वीर खींचने के लिए कहा। तब हम कुर्सी पर बैठे हुए थे। वे तस्वीर खींचने लगीं। हमने टोकना चाहा कि जब कोई कुर्सी पर बैठा हो, तब खड़े होकर तस्वीर खींचने से एक तरह बौनापन तस्वीर में नजर आता है; इसलिए कुर्सी पर बैठे व्यक्ति की तस्वीर जमीन पर बैठकर खींचनी चाहिए, पर हमने टोका नहीं।
कुछ दिनों बाद हमने 'प्रैक्टिकल' करके इस बात को बताया। पहले हमने उनकी तस्वीर खींची- वे कुर्सी पर बैठी थीं और हमने बैठकर तस्वीर ली। फिर हमने उनको इसी तरह से तस्वीर खींचने को कहा।
दोनों के परिणाम इस प्रकार रहे-
और भी कुछ दिनों के बाद हमने परीक्षा ली। इस बार भी हमने पहले तस्वीर खींची, फिर उनको खींचने के लिए कहा। इस बार के दोनों परिणाम-
और हाँ, जहाँ से बात शुरू हुई थी, यानि जो तस्वीर उन्होंने खड़े होकर खींची थी, उसका परिणाम ऐसा था-
एक अतिरिक्त परिणाम-
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जब बात निकलती है, तो थोड़ी दूर तलक जाती है।
घर से बाहर भी इस तकनीक को आजमाया जा सकता है। 2018 की दो तस्वीरें भी पेश हैं। मेरे मित्र ने खड़े होकर मेरी तस्वीर खींची थी और हमने बैठकर उसकी तस्वीर खींची थी, परिणाम में अन्तर साफ नजर आ रहा है।
शायद तकनीकी भाषा में इसे 'Low Angle Photography' कहते हैं।
रोचक है... इस बात की तरफ ध्यान ही नहीं दिया...
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