ऊपर तस्वीर में अँग्रेजी में जो हस्ताक्षर है (Jaydeep), उसे किया भले हम्हीं ने है,
मगर वह मेरा हस्ताक्षर नहीं है। हम यह हस्ताक्षर कभी नहीं करते,
कहीं नहीं करते। हमने इसकी खोज या इसका आविष्कार भी नहीं किया। मेरा खुद का
हस्ताक्षर हिन्दी, यानि देवनागरी में होता है, जिसमें 'जयदीप' लिखा होता है।
पिताजी तीनों भाषाओं में सुन्दर हस्ताक्षर
किया करते थे। अँग्रेजी में J.C. Das लिखा होता
था और हिन्दी-बँगला में 'जगदीश'। हमने हिन्दी वाले हस्ताक्षर का नकल किया।
शुरु-शुरु में मेरे हस्ताक्षर में ज य दी और प- चारों को पढ़ा जा सकता था- हालाँकि
वे आपस में सटे हुए होते थे; मगर धीरे-धीरे सारे वर्ण आपस में ऐसे गुथ गये कि अब
अलग से इन वर्णों को पढ़ा नहीं जा सकता।
एक बार मेरी किसी किताब पर या शायद किसी कॉपी
पर हमने देखा कि किसी ने अँग्रेजी में मेरा हस्ताक्षर कर रखा था। वह बहुत ही
सुन्दर था। हमने कई बार नकल किया, पर उसे हम साध नहीं पाये। हाँ, इतना हुआ कि उसका
पैटर्न हमें याद रहा। वह हस्ताक्षर किसने किया था- यह हमें वास्तव में नहीं पता!
हमने पिताजी से कभी पूछा भी नहीं। बहुत सम्भव है, उन्होंने ही किया हो।
खैर, अभी फेसबुक पर एक विज्ञापन आ रहा है,
जिसमें छायाकारों से कहा जा रहा है कि वे 'लोगो' के रुप में अपने हस्ताक्षर को
तस्वीर में उकेर सकते हैं। बेशक, यह एक व्यवसायिक विज्ञापन है और इस युक्ति को
पाने के लिए हमें पैसे खर्च करने होंगे।
तो इसीलिए हमने अभिमन्यु से पूछा कि तस्वीर
पर हस्ताक्षर को उकेरने के लिए क्या किया जा सकता है? उसने "कोरल ट्रेस"
की मदद लेने को कहा। काम शुरु करने से पहले अचानक हमें ध्यान आया कि क्यों न इस
काम के लिए उस "अँग्रेजी" वाले हस्ताक्षर का उपयोग किया जाय, जिसकी खोज
हमने नहीं की थी और जिसे हम कभी-कहीं नहीं करते! इसमें नाम भी साफ पढ़ा जा सकता है।
वही किया। चार-पाँच बार उस हस्ताक्षर का
अभ्यास किया, जो ठीक बना, उसे 'स्कैन' किया, फिर कोरल ट्रेस में ले जाकर उसे ट्रेस
किया और फिर एक तस्वीर में उसे चिपकाया। पता चला, बीच-बीच में कुछ हिस्से 'भरे
हुए' नजर आ रहे हैं, जहाँ लकीरें एक 'बन्द' स्थान बना रही थीं। कई बार कोशिश करके
भी सफलता नहीं मिली। फिर एक उपाय सूझा। 'कोरल फोटो-पेण्ट' में इमेज को ले जाकर
'इरेजर' का इस्तेमाल करते हुए 'बन्द' लाईनों में महीन 'कट' लगा दिया। अब सफलता मिल
गयी। 'ट्रेस' में ही इमेज को 'इनवर्ट' करके सफेद लाईनों में हमने हस्ताक्षर हासिल
कर लिया।
इस 'लोगो' को दीवाली के शुभकामना सन्देश के
साथ पहली बार हमने प्रस्तुत किया। अब "राजमहल पहाड़ियों" शृँखला वाली
तस्वीरों पर भी इसका इस्तेमाल करते हुए उन्हें प्रस्तुत करने जा रहे हैं।
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ११७ वीं जयंती पर अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी
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