जगप्रभा

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बुधवार, 13 सितंबर 2017

184. "मान"





       चित्रों में आप जो बड़े-बड़े पत्ते देख रहे हैं, ये कच्चू, अरबी का घुईयाँ के नहीं हैं, बल्कि (सम्भवतः) उसी प्रजाति की एक अन्य वनस्पति के हैं। हमारे यहाँ इसे "मान" कहते हैं। इसका यह नाम क्यों है, इसका जरा भी अन्दाजा हमें नहीं है।
       साल भर इस जंगली वनस्पति को कोई नहीं पूछता, मगर आज "जीताष्टमी" के दिन सुबह-सुबह ही लोग इसे खोजना शुरु कर देते हैं। दरअसल, आज माँयें व्रत के दौरान जो "डाला" (फलों की टोकरी) भरती हैं, उन टोकरियों को इसी "मान" के पत्ते से ढकने की परम्पर इधर प्रचलित है। इसके पीछे कारण क्या है, पता नहीं। शायद इस ऋतु तक ये पत्ते विशाल आकार धारण कर लेते हैं इसलिए इन्हें चुना गया है। इसी बहाने घर के आस-पास के बरसाती वनस्पतियों की थोड़ी सफाई भी हो जाती है।
       हमारे घर के आस-पास ये पर्याप्त मात्रा में उगते हैं और सारे मुहल्ले की जरुरत को ये पूरा कर देते हैं। 

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन रामास्वामी परमेस्वरन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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