(इस आलेख को मैंने लिखा तो था शिवरात्रि के दिन, पर कुछ कारणों से पोस्ट नहीं कर पाया था.)
शिवजी आडम्बर एवं विलासिता से रहित जीवन व्यतीत करते हैं- सादगी
भरा।
वे कभी कोई छल-प्रपंच नहीं रचते- न ही किसी के द्वारा रचे गये प्रपंच में स्वयं को
शामिल करते हैं। उनका स्वभाव भोला है, सरल है। वे बहुत आसानी से और बहुत जल्दी
किसी पर भी प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन... लेकिन... लेकिन...
...अगर किसी ने उन्हें क्रोध दिला दिया, तो फिर तीनों लोकों में
किसी की मजाल नही है कि वह उनके सामने ठहर सके! उनके "ताण्डव" से सभी भय
खाते हैं।
अपने पौराणिक आख्यानों में मुझे शिवजी के ये गुण बहुत पसन्द हैं।
मेरे विचार से, हर व्यक्ति, समाज या राष्ट्र को ऐसा ही होना चाहिए- आडम्बर एवं
विलासिता से दूर, सादगी भरा जीवन: न कोई छल-प्रपंच रचना और न ही किसी के द्वारा
रचे गये प्रपंच में स्वयं को शामिल करना; आम तौर पर स्वभाव से सरल, भोला और उदार
होना- यानि जरुरतमन्दों की भलाई के लिए सदैव तत्पर रहना; किसी भी दूसरे व्यक्ति,
समाज या राष्ट्र के साथ प्रसन्नचित्त होकर एवं खुले मन से मिलना-जुलना; लेकिन...
लेकिन... लेकिन...
हर दूसरे व्यक्ति, समाज या राष्ट्र को यह अच्छी तरह से पता होना
चाहिए कि अगर यह क्रोधित हो गया, तो फिर रक्षा नहीं है! यानि कोई दूसरा बेवजह
छेड़ने, धौंस जमाने, हड़काने, डराने-धमकाने, या लड़ने-झगड़ने की हिम्मत न कर सके।
सिर्फ और सिर्फ सरल, दयालु, उदार होना ठीक नहीं। मैंने कहीं पढ़ा
कि पारसी समुदाय सिर्फ अत्याचार सहने में विश्वास रखता है, प्रतिरोध करने में नहीं।
आज उनकी पहचान कुछ खास नहीं है। देश के अन्दर काश्मीरी पण्डितों ने भी संगठित होकर
प्रतिरोध करने का हौसला नहीं दिखाया- परिणाम सामने है! ऐसा मैंने कहीं पढ़ा, सो
जिक्र कर रहा हूँ। यहूदियों ने संगठित होकर अत्याचार का प्रतिरोध किया और आज
उन्हें छेड़ने या हड़काने की हिम्मत किसी में नहीं है!
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कहते हैं कि रामायणकाल में शिवजी ने ही हनुमानजी का रुप धारण
किया था। अब यह संयोग ही है कि मुझे हनुमानजी का चरित्र भी बहुत पसन्द है।
सोचकर देखिये, कितनी शक्तियाँ प्राप्त हैं हनुमानजी को- वे क्या
नहीं कर सकते! मगर उनकी विनम्रता तो देखिये... ओह, मन भर आता है। इतनी शक्तियाँ
प्राप्त होते हुए भी इतनी विनम्रता!
मुझे लगता है हर व्यक्ति, समाज या राष्ट्र को ऐसा ही होना चाहिए।
वह शक्तिवान बने, मगर जरुरत पड़ने ही अपनी शक्तियों का उपयोग करे। शक्तियों का
लेशमात्र भी अहंकार वह मन में न पाले।
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बिजय बाबू, बैंक और बेहद बुरी ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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