मेरे घर के आस-पास तीन चीजें बहुत दिनों से "बसन्त" के
आगमन की घोषणा कर रही थीं, मैं उन्हें देख रहा था, महसूस कर रहा रहा था, मगर कुछ
कारणों से लिख नहीं पा रहा था।
वे चीजें हैं- आम के मंजर, सहजन के फूल और शीशम के पत्ते।
इस साल मंजर ज्यादा आये हैं। कहते हैं कि
हर दूसरे साल ऐसा होता है। कुछ बड़े पेड़ों पर मैंने इतने मंजर देखे कि लगा पत्तियों
से ज्यादा मंजर ही हैं! अभी तक दो-तीन बार बूँदा-बांदी जरुर हुई है, मगर आँधियाँ
नहीं चली हैं, सो मंजर भी सारे टिके हुए हैं। अब देखा जाय, आम की पैदावार कैसी
होती है।
शाम के वक्त आम के पेड़ों के नीचे से गुजरते
समर मंजर की खुशबू जब नथुनों में घुसती है, तब मैं अक्सर एक बात सोचता हूँ- कितने
भाग्यशाली होंगे, जिनके नथुनों में यह खुशबू घुसती होगी? कितने ऐसे होंगे, जो
घुसती हुई इस खुशबू को महसूस भी करते होंगे?
अभी जबकि मैं यह लिख रहा हूँ, मंजरों का
कैशोर्य एवं यौवन ढलान पर है, और वे परिपक्व हो रहे हैं- फल बनने के लिए...
***
बहुत-से लोग शायद 'सहजन' से परिचित न हों।
अँग्रेजी में जिस सब्जी का नाम Drumstick है,
वही सहजन कहलाता है। अभी कुछ
दिनों पहले तक सहजन के पेड़ सफेद फूलों से लदे हुए थे, अब वे भी कम हो रहे हैं-
वहाँ भी फूल से फल बनने का सिलसिला शुरु हो गया है।
एक नीम्बू का पेड़ भी है, हमारे घर के
पिछवाड़े में- उसके फूल तो सारे झड़ हैं अब नन्हें-नन्हें फल दिख रहे हैं- ध्यान से
देखने पर।
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इन सबके अलावे, कोयल की कूक और पपीहा की पीऊ-कहाँ भी सुनायी पड़ने लगी है...
बसंत और फिर फागुम इस मस्त खुशबू को ले के आता है ...
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