यह एक
सुखद संयोग है कि (ईस्वी संवत् के हिसाब से) मेरे बेटे का पन्द्रहवाँ जन्मदिन आज
दीपावली के दिन ही पड़ा है।
भारतीय पंचांग के हिसाब से उसका जन्मदिन गुरू नानक जयन्ती वाले दिन पड़ता है। उसका
जन्म हुआ भी पंजाब में है- जालन्धर छावनी के सेना अस्पताल में। उसके जन्म के साथ
गुरू नानक देव का आशीर्वाद भी जुड़ा है, जिसका जिक्र मैंने एक ब्लॉग पोस्ट (‘रक्तदान तथा
अभिमन्यु का जन्म’) में कर रखा है। उसके जन्म से पहले ही हमने तय कर रखा था कि
अगर बेटी हुई, तो वह “उत्तरा” होगी और अगर बेटा हुआ, तो वह होगा- “अभिमन्यु”!
खैर, चित्र में वह अपने इस विशेष जन्मदिन के विशेष तोहफे- एक “एयर गन” के साथ है।
दरअसल, कुछ समय पहले एक छोटे-से मेले में एयर गन से गुब्बारों पर
निशाना लगाते हुए मैंने उसे देखा था- निशाना बढ़िया था। मैंने पूछा- निशाना कैसा
अच्छा हुआ तुम्हारा? उसका उत्तर था- कम्प्यूटर-गेम्स से। मैंने तभी तय कर लिया था
कि इसे एक एयर गन दिलाऊँगा।
मुझे पूरा विश्वास है- उसके स्वभाव को देखते हुए- कि वह इस बन्दूक
से कभी किसी चिड़िये पर निशाना नहीं लगायेगा और न ही इसके इस्तेमाल में कभी लापरवाही
बरतेगा। वह बहुत अच्छा निशाना लगाना सीखे- यही मेरी दुआ है। उसने चार्ट पेपर पर
छोटे-बड़े वृत्त बनाकर निशानेबाजी शुरु कर दी है। अब उसे यह बन्दुक भी हल्की लगने
लगी है।
हालाँकि यह एक एयर-गन है, मगर है असली बन्दुक ही- कोई खिलौना तो
नहीं है। अतः बन्दुक के साथ काफी ‘जिम्मेदारियाँ’ जुड़ी होती हैं- यह मैंने उसे
पहले ही बता दिया है। मेरे पास जिम कॉर्बेट की रचनाओं का पूरा संकलन है- मैंने
देखा, उसने उन्हें पढ़ना शुरु कर दिया है। इससे वह उन ‘जिम्मेदारियों’ एवं ‘सावधानियों’
को बेहतर तरीके से समझ सकता है।
***
उसके पिछले जन्मदिन पर मैंने उसे ‘फ्लिपकार्ट’ से सत्यजीत राय के “फेलू-दा” सीरीज के सभी
(शायद 36) उपन्यासों का संकलन- दो खण्डों में- मँगा दिया था। उसने अभी तक बँगला
पढ़ना नहीं सीखा है और ये उपन्यास हिन्दी में अनुदित नहीं हुए हैं (शायद मैं ही कभी
इनके अनुवाद का बीड़ा उठाऊँ), इसलिए यह संकलन मैंने उसे अँग्रेजी में मँगवा दिया।
इतने मोटे-मोटे दोनों खण्डों को वह बहुत कम समय में चट कर गया। “फेलू-दा” एक प्राइवेट
डिटेक्टिव हैं, जो करीब-करीब हर विषय की जानकारी रखते हैं। सत्यजीत राय ने किशोरों
को लक्ष्य करके की इस चरित्र की रचना की है।
***
‘फ्लिपकार्ट’ से
ध्यान आया- मैंने उसे छूट दे दी है कि वह यहाँ से अपनी पसन्द की पुस्तकें मँगा सकता
है। कुछ समय पहले दफ्तर में एक पार्सल मिला। घर लाकर मैंने बेटे को थमा दिया। बाद
में यूँ ही पूछा- कौन-सी किताब मँगवाये हो? उत्तर सुनकर मैं चौंक गया। उसने कार्ल
मार्क्स और फ्रेडरिक एंजेल्स की पुस्तक “कम्यूनिस्ट
मैनिफेस्टो” मँगवाई
थी। बाद में उसने “दास कैपिटल” भी मँगवायी। मैंने जानना चाहा- इस झुकाव के पीछे वजह। उसका
उत्तर था- हमारी पाठ्य-पुस्तक में साम्यवाद पर ज्यादा जानकारी नहीं है, जो भी
जानकारी है, उससे तो यह ‘वाद’ अच्छा लग रहा है। मैंने बताया कि एक समय पाठ्य-पुस्तक
तैयार करने वालों में ज्यादातर साम्यवादी विचार वाले ही हुआ करते थे, अब शायद
उदारीकरण के दौर में उन्हें निकाल बाहर कर दिया गया हो। मैंने यह भी बताया कि ‘थ्योरी’
में साम्यवाद, या इसका उदार रुप ‘समाजवाद’ अच्छा है ही, मगर वर्तमान साम्यवादियों/समाजवादियों
ने इसका कचरा कर दिया है- चाहे वे चीन के हों या भारत के। हाँ, क्यूबा, वेनेजुएला
वगैरह में यह ठीक-ठाक है। हमारे त्रिपुरा राज्य के साम्यवादी मुख्यमंत्री- माणिक सरकार- भी एक आदर्श हैं। मैंने जानना चाहा कि वह खास तौर पर साम्यवाद/समाजवाद से
प्रभावित है क्या? उसके उत्तर ने मुझे संतुष्ट किया कि वह कभी “संकीर्ण” विचारधारा
नहीं अपनायेगा। उसका उत्तर था- अगर “कैपिटलिज्म” पर कोई पुस्तक मिलेगी, तो उसे भी वह पढ़ेगा।
"ब्लॉग बुलेटिन" में इस आलेख को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार...
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