अभिमन्यु क्या दीवाली मनायेगा- दीवाली तो
मनायी राज और मुस्कान ने।
अभिमन्यु तो आप जानते ही हैं- मेरे बेटे का नाम है। राज और
मुस्कान मुमताज़ भाई साहब के बच्चे हैं। हम जिस मकान में किराये पर रहते हैं यहाँ
(अररिया में), उसके दूसरे हिस्से में वे रहते हैं। मुस्कान होगी कोई आठ साल की और
राज छह साल का। दोनों हमलोगों से घुले-मिले हैं। अब तो उनका साल भर का नन्हा भाई
रियाज़ भी हमलोगों से हिल-मिल गया है। रियाज़ को उसके पापा मजाक में ‘विक्की प्रसाद’
बुलाते हैं।
हम धमाका करने वाले बम-पटाखे दीवाली पर नहीं लेते- अभिमन्यु को
पसन्द भी नहीं है। इस बार भी हम फुलझड़ी और चरखी लाये थे, बस। मुस्कान और राज के
बारे में सोचकर (तथा पिछले साल के अनुभव के आधार पर) कुछ ज्यादा ले लिये थे। बाद
में जब बाजार गया था, तो पटकने वाले थोड़े पटाखे और एक ‘कन्दील’ भी खरीद लाया था-
क्योंकि इसे हाथ से बनाकर बेचा जा रहा था।
शाम होते ही यथारीति दोनों भाई-बहन मचल गये- दीवाली मनाने के लिए।
अभिमन्यु को कोई फर्क नहीं पड़ता- बच्चों वाली चंचलता उसमें कम ही है। और फिर, इस
दीवाली के दिन उसने 16वें साल में कदम रखा था।
जब अंशु पूजा
कर रही थी, मुस्कान बाकायदे सर पर दुपट्टा रखकर पास बैठी रही और बड़े ध्यान से
हमारी एक-एक गतिविधि को नोट कर रही थी। बाद में, दीये जलाने में उसने पूरे मन से
मदद की। इसके बाद दोनों शुरु हो गये। थोड़ी देर में अभिमन्यु भी शामिल हो गया। पड़ोस
के दो बच्चे और जुटे। खूब फुलझड़ियाँ जलायी गयीं, चकरियाँ चलायी गयीं। जैसा कि
मैंने बताया- बम और रॉकेट से हम दूर ही रहते हैं। हाँ, बच्चों का एक ‘साँप’ होता
है, वह भी लाये थे हम। राज और मुस्कान के लिए भी उनके पापा अनार तथा कुछ अन्य
पटाखे लाये थे।
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