ये हैं पूर्णिया सिटी की काली माँ
इस तस्वीर का उद्देश्य है- राष्ट्रीय राजमार्ग-57 का एक दृश्य दिखाना. दृश्य के बीच में जो कार्टून है, वह हम्हीं हैं. आज (शनिवार, 20 अक्तूबर'12) हमदोनों सुबह-सुबह ही काली माँ के दर्शन के लिए
निकल पड़े थे. ऐसे तो हम "साइक्लिस्ट" आदमी हैं, मगर कभी-कभार 1999 मॉडल का
'लीजेण्ड' चला लेते हैं.जब 2008 में हम अररिया आये थे, तब इस राष्ट्रीय राजमार्ग का काम चल ही रहा था- '10 में यह पूरा हुआ. अभी तो यह राजमार्ग इस इलाके की शान है और लम्बी यात्रा करने वालों तथा गति के दीवानों के लिए वरदान है!
मन्दिर के तीन दृश्य- पहले फोटो में अंशु है, तीसरे में हम और बीच वाले फोटो में वे भाई साहब हैं, जो सामंने से नहीं हटे.
कुछ रोज पहले हमने पूर्णिया जाते समय एक सुन्दर दृश्य देखा था. काली मन्दिर के पास से जो नदी बहती है, उसके किनारे की परती जमीन पर "कास" के सफेद फूलों का विशाल जंगल फैला हुआ था. वह दिन बदली वाला था. मैं फोटोग्राफी के लिए ललच गया था, मगर मैं टेम्पो में बैठा हुआ था.
आज मन्दिर से निकल कर मैं नदी के किनारे गया, कास के फूल के जंगल तो थे, मगर न उस तरह के बादल थे और न ही उस दिन- जैसा प्रकाश-संयोजन! आज बहुत ही हल्के कुहरे का असर था. मैंने वहाँ तस्वीर खींची ही नहीं!
वापस लौटते समय "जलकुम्भी" के फूलों से ढके इस तालाब के दो तस्वीर खींचकर मैंने शौक पूरा कर लिया... मगर उस दृश्य की छायाकारी न कर पाने का अफसोस अब हमेशा रहेगा!
लौटते वक्त एक ढाबे में हम रुके- अभिमन्यु के लिए नाश्ता पैक करवाने के लिए. मैं भी नाश्ता करने लगा. अंशु का तो व्रत था. बैठे-बैठे उसने यह फोटो खींच लिया.
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