बैंक में
अपनी शाखा के काउण्टर पर मुझे स्याही वाले कलम से काम करते देख कई लोग आश्चर्य
व्यक्त करते हैं- ‘आप अभी तक इस कलम का इस्तेमाल करते हैं?’ या फिर- ‘स्कूल के बाद
पहली बार इस कलम को देख रहे हैं!’
चार वर्षों
में अब तक दो ही व्यक्तियों ने स्वीकार किया है कि वे भी स्याही वाला कलम चलाते
हैं।
वायु सेना के दिनों में भी मैं एक स्याही
वाला कलम हमेशा अपने साथ रखता था। वहाँ उन दिनों चूँकि ज्यादातर काम की ‘कार्बन प्रतिलिपियाँ’
बना करती थीं, इसलिए स्याही वाले कलम का इस्तेमाल कम होता था; फिर भी, मैं उसे
रखता जरुर था।
घर पर तो लिखने का काम मैं प्रायः स्याही
वाले कलम से ही करता हूँ।
लोग इस बात पर आश्चर्य करते हैं कि मैं आज
भी स्याही वाला कलम चलाता हूँ; जबकि मुझे आश्चर्य इस बात का है कि लोग स्याही वाला
कलम चलाते क्यों नहीं? कलम मिलता है, स्याही मिलती है, निब तथा ड्रॉपर भी मिलते हैं,
फिर इसका इस्तेमाल हम क्यों न करें? यह किसी भी ‘रिफिल’ से सस्ता भी पड़ता है।
***
कुछ महीनों पहले एक बुक डिपो के मालिक ने
बैंक में मुझे सूचित किया- ‘कुछ नये फाउण्टेन पेन आये हुए हैं, आकर देख लीजियेगा।’
मैं बाद में कभी दूकान पर गया, तो पाया दक्षिण भारत की मशहूर कम्पनी ‘Chelpark’ ने दो नये स्याही वाले कलम
बनाये हैं- एक का नाम था- ‘Commander’ और दूसरे का- ‘Terminator’।
‘कमाण्डर’ बड़ा कलम था, तो ‘टर्मिनेटर’ स्लिम। दोनों कलम आकर्षक थे। अब तक इस
कम्पनी के स्याही का ही मैंने इस्तेमाल किया था।
मैंने दोनों मॉडल के एक-एक कलम लिये। ‘कमाण्डर’ के पैसे वाइजुल साहब (दूकान के मालिक, उनका
अपना प्रेस भी है) ने नहीं लिये- बोले, ‘यह हमारी तरफ से है।’ यह शायद जनवरी माह
की बात है। प्रायः डेढ़ महीने बाद जब मेरी पुस्तक “नाज़-ए-हिन्द सुभाष” छपी, तो इसी ‘कमाण्डर’
कलम से हस्ताक्षर करके मैंने वाइजुल साहब को पुस्तक की एक प्रति भेंट की।
‘टर्मिनेटर’ मैंने अभिमन्यु (मेरे बेटे) को
दे दी।
‘कमाण्डर’ ने कुछ दिनों तक तो परेशान किया- निब के पास से
स्याही रिसती थी, मगर बाद में यह शिकायत दूर हो गयी। अब सोच रहा हूँ इस मॉडल के
कुछ और कलम खरीद कर रख ही लूँ।
इसके पहले मैंने एक दूकान से ‘फ्लोरा’ के पाँच कलम खरीद कर
रख लिये थे, एक जगह निब मिली, तो दर्जन भर निब ले लिया था। इसी प्रकार, चार-पाँच
ड्रॉपर भी लेकर रख लिये हैं। हाँ स्याही जब खत्म होती है, तब दो दवात ले आता हूँ-
वैसे आप समझ सकते हैं- स्याही खरीदने की नौबत भी बहुत दिनों के बाद ही आती है।
शौक बहुत बड़ी चीज़ है साहब ... जो न करवाए कम है ... ;-)
जवाब देंहटाएंपूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और आप सब की ओर से अमर शहीद खुदीराम बोस जी को शत शत नमन करते हुये आज की ब्लॉग बुलेटिन लगाई है जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... और धोती पहनने लगे नौजवान - ब्लॉग बुलेटिन , पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
अरे बड़ा मज़ा आता है...अभी हमने भी खरीदा "हीरो" का चाइनीज़ कंपनी है...बचपन से दीवाने थे उसके सुनहरे ढक्कन के :-)
जवाब देंहटाएंलीक भी नहीं करता...वेसलीन लगा कर चूड़ी कसते थे पहले..
:-)
अनु
अभी पिछले दो-तीन महीनों से मैंने भी स्याही वाले कलम से लिखना शुरू किया है... स्कूल के दिनों में लिखता था, फिर आदत छूट गयी... वापस स्याही वाले कलम से लिखना शुरू किया है...
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