कल सुबह जब मैं दीदी के पास राखी बँधवाने बैठ गया, तब
मेरा ध्यान गया कि मेरी दाहिनी कलाई पर एक काला धागा बँधा हुआ है। इस ‘काले’ धागे के रहते राखी बँधवाते मुझे ठीक नहीं लगा
और मैंने भगनी से एक कैंची मँगवाकर उसे काट दिया।
इस धागे को मैंने पिछले साल अगस्त में बाँधा
था- अन्ना के आन्दोलन के दौरान। चूँकि मैं सक्रिय रुप से आन्दोलन में शामिल नहीं
था, अतः मैं दिनभर का उपवास रखता था और ‘कु’व्यवस्था के प्रति विरोध के प्रतीक के
रुप में मैंने एक काला धागा कलाई पर बाँध लिया था।
अन्ना का अनशन समाप्त होने पर भी इस धागे को
मैंने नहीं काटा था- सोचा, जब संसद लोकपाल का गठन कर देगी, तब इसे काटूँगा।
इसके बाद मुम्बई में अन्ना का एक आन्दोलन
हुआ, पर पता नहीं क्यों, मेरी अन्तरात्मा ने उन्हें ‘नैतिक समर्थन’ देने के लिए
मुझे नहीं कहा। फिर राजघाट पर एक दिन का अनशन हुआ और अभी आज जन्तर-मन्तर पर
अनशन-आन्दोलन समाप्त हुआ- मेरी अन्तरात्मा की तरफ से कोई आवाज नहीं आई कि मैं भी
उपवास रखूँ या उन्हें नैतिक समर्थन देते हुए ब्लॉग/फेसबुक पर कुछ लिखूँ।
अब मैं यह सोचकर आश्चर्य-चकित हो रहा हूँ कि
जिस वक्त मैं अपनी कलाई के उस काले धागे को काट रहा था- ठीक उसी वक्त टीम अन्ना की
कोर-कमिटी अनशन-आन्दोलन की राह छोड़कर ‘राजनीति में उतरने’ के लिए अन्तिम निर्णय ले
रही होगी! यानि मेरी अन्तरात्मा ने बिलकुल सही समय पर उस काले धागे को हटवा दिया।
आशा करता हूँ कि मेरी अन्तरात्मा या मेरी
छठी इन्द्रिय आगे भी इसी प्रकार मुझे सही निर्णय लेने में सहायता करती रहेगी...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें