"ओल" के बारे में तो सभी जानते होंगे- इसे "सूरन" और "जिमिकन्द" कहते हैं, लेकिन ओल के पौधे के बारे में सब नहीं जानते होंगे। इसके पौधों को हमारे इलाके में "ओलमोचा" कहते हैं। बरसात शुरू होते ही ये पौधे घरों के पिछवाड़े में, परती जगहों में और 'घूरे' (जहाँ घरों का कचरा फेंका जाता है) पर उगने लगते हैं। आम तौर पर साफ-सफाई के समय इन्हें उखाड़ कर फेंक ही दिया जाता है, लेकिन पहाड़ियों (हमारे यहाँ की 'राजमहल की पहाड़ियाँ') पर जो ओलमोचे उगते हैं, उन्हें बाकायदे काटकर आदिवासी महिलाएं बाजार में बेचने के लिए लाती हैं और बरसात के उन शुरुआती दिनों में लोग बड़े चाव से उसके तनों की सब्जी खाते हैं। पहाड़ियों पर उगने वाले ये ओलमोचे होते भी बड़े-बड़े हैं।
ओलमोचे की सब्जी बनाना कोई आसान नहीं है- हर कोई नहीं बना सकता। बनायेगा भी तो वह स्वाद नहीं आयेगा, जिसके लिए इसे खाया जाता है। घरों में अनुभवी महिलाएं ही इनकी सब्जी बनाती हैं। हालाँकि विधि मामूली है- लेकिन "खटाई" की मात्रा जो इसमें मिलायी जाती है, उसी में अनुभव काम आता है। खटाई कम हो जाय, तो खाते समय मुँह में खुजली हो सकती है। बहुत-से लोग इसे काटते-छीलते समय हाथों में प्लास्टिक की थैलियाँ पहनते हैं- कहा जाता है कि ऐसा न करने से हथेलियों में खुजली हो सकती है।
ओलमोचा की सब्जी बनाने की विधि, जैसा कि मेरी चाचीजी ने बताया-
पहले ओलमोचा को छीलकर, काटकर पानी में उबालना है।
उबालने के बाद इस पानी को फेंक देना है।
अब लहसून, सरसों और हरी मिर्च को पीसकर उसका पेस्ट बना लेना है।
कड़ाही में तेल डालकर पेस्ट को भुनना है- जैसे कोई भी मसाला भूना जाता है।
अब उबाले हुए ओलमोचे को अच्छी तरह से निचोड़ कर भुने हुए मसाले में डालना है।
इसके बाद नमक, हल्दी और नीम्बू का रस इसमें मिलाना है।
नीम्बू के रस के स्थान पर किसी भी खटाई का प्रयोग किया जा सकता है।
मिश्रण को तब तक भूनना है, जब तक मिश्रण कड़ाही न छोड़ने लगे।
सब्जी तैयार है।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-7-22}
को सैनिकों की बेटियाँ"(चर्चा अंक 4495)
पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत-बहुत धन्यवाद।
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