ये हैं जनाब गुड्डू रंगीला ग्रिलवाले 'ओल-झोल'
गुड्डू
इनका नाम है;
रंगीला
इनका मिजाज है;
ग्रिल
का काम इनका पेशा है; और-
'ओल-झोल'
इनका तकिया-कलाम है।
इनके
फोन में जो 'कॉलर-ट्युन' है, वह खतरनाक है! खासकर, विवाहित लोगों के लिए। जब आप इन
जनाब को फोन कीजियेगा, तब आपके फोन पर एक महिला की मीठी आवाज कुछ इस प्रकार से
सुनायी पड़ेगी-
"हैलो...
क्या, मैं कौन?... अच्छा, तो अब मेरी आवाज भी नहीं पहचान नहीं रहे... शादी से पहले
तो घण्टों बातें करते थे... तब समय भी बहुत मिलता था... अब टाईम ही नहीं मिलता...
और पहचानते भी नहीं... "
अगर
आपके फोन का स्पीकर ऑन है और यह आवाज आपकी श्रीमतीजी के कानों तक पहुँच गयी, तब
आशंकित खतरे का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है...
*
जब
तकिया-कलाम का जिक्र हो ही गया है, तो बात को कुछ दूर तलक ले ही जाया जाय। हमारा
एक दोस्त है- कुन्दन, वह 'ओल-झोल' के स्थान पर 'हाबि-जाबि' और 'नौ-सतरह'
तकिया-कलाम का इस्तेमाल करता है।
'ओल-झोल',
'हाबि-जाबि', 'नौ-सतरह' का एक पर्यायवाची है- 'लन्द-फन्द'। वायु सेना स्थल, बिहटा
के दिनों में एक सहकर्मी सार्जेण्ट को देखा था इस तकिया-कलाम का कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल
करते हुए। हम बिहार-झारखण्ड वालों के लिए यह मामूली मुहावरा था, मगर वहाँ तो कई
राज्यों के लोग थे। तो 'लन्द-फन्द' मुहावरा उनके लिए काफी मनोरंजक था। ऐसा हो गया
था कि कुछ उन्हें 'सार्जेण्ट लन्द-फन्द' ही कहने लगे थे हास्य-विनोद में।
एस.बी.आई. के दिनों में एक साहब मिले थे, जो
उपर्युक्त तकिया-कलाम का विस्तृत रूप प्रयोग करते थे- 'लन्द फन्द शकरकन्द'।
ऐसे
ही, वायु सेना स्थल, तेजपुर में एक सार्जेण्ट साहब मिले थे, जिनका तकिया-कलाम था-
'बड़ा कष्ट है'। इस 'बड़ा कष्ट है' तकिया-कलाम का वे अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग टोन
में इस्तेमाल करते थे। यानि इस एक ही तकिया-कलाम से वे कई तरह के मनोभाव- खुशी से
लेकर नाखुशी तक- प्रकट कर लिया करते थे।
एक
ऐसा तकिया-कलाम भी सुनने को मिला था, जो हमें काफी मजेदार लगा था, वह था-
'मुकदमा'। मास्टर वारण्ट अफसर साहब के टेबल पर जब कई सारे फाईल इकट्ठे हो जाया
करते थे दस्तखत के लिए, तो दस्तखत करते वक्त वे अक्सर पूछा करते थे- 'हाँ, ये वाला
मुकदमा किसका है भाई?' (यानि इस फाईल को किसने पुट-अप किया है।)
इति।
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