भारतीयों को भारतीय पक्षियों से परिचित कराने के लिए सलीम अली ने
वैज्ञानिक शैली में पुस्तक लिखी थी। भाषा अँग्रेजी थी और बात है 1941 की। बाद के
दिनों में उनकी पुस्तक के बहुत सारे अनुवाद एवं संस्करण प्रकाशित हुए और आज वे
'बर्डमैन ऑफ इण्डिया' के नाम से जाने जाते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1948 से '55 के बीच यही काम एक भारतीय कथाकार ने भी किया था? उन कथाकार का नाम है- 'बनफूल'। उन्होंने स्वाभाविक रूप से इस काम के लिए साहित्यिक शैली को चुना था। चूँकि उनकी यह रचना बँगला में थी और चूँकि उनकी इस रचना का अँग्रेजी या हिन्दी में अनुवाद नहीं हुआ, इसलिए देश के साहित्यरसिक एवं पक्षीप्रेमी दोनों इस अद्भुत् कृति से अनजान रह गये हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1948 से '55 के बीच यही काम एक भारतीय कथाकार ने भी किया था? उन कथाकार का नाम है- 'बनफूल'। उन्होंने स्वाभाविक रूप से इस काम के लिए साहित्यिक शैली को चुना था। चूँकि उनकी यह रचना बँगला में थी और चूँकि उनकी इस रचना का अँग्रेजी या हिन्दी में अनुवाद नहीं हुआ, इसलिए देश के साहित्यरसिक एवं पक्षीप्रेमी दोनों इस अद्भुत् कृति से अनजान रह गये हैं।
करीब दस वर्षों तक दूरबीन लेकर पक्षियों का अध्ययन करते हुए तथा
पक्षियों पर लिखी गयी पुस्तकों का भी अध्ययन करते हुए उन्होंने एक वृहत् उपन्यास
की रचना की थी, जिसका नाम है- 'डाना'। डाना यानि डैना यानि पंख। उपन्यास का कथानक
नायिका प्रधान है और नायिका का नाम भी 'डाना' ही है, जो 'डायना' से बना था। डाना
एक 'बर्मा-रिफ्युजी' युवती होती है। अन्य प्रमुख किरदारों में एक पक्षी-विशारद हैं,
जिनकी ओर से पक्षियों का परिचय दिया जा रहा है; एक कवि हैं, जो पक्षियों को देख
मुग्ध हो कविताएं लिखते हैं; एक दुनियादार व्यक्ति हैं, जो पक्षी को देख उसके मांस
के सुस्वादु होने-न होने के बारे में सोचते हैं; और एक युवा सन्यासी हैं, जो हर
बात से प्रायः निस्पृह हैं। उपन्यास का कथानक बहुत ही ऊँचे दर्जे का है। इस
उपन्यास को उन्होंने तीन खण्डों में लिखा था- 1948, 1950 और 1955 में।
मेरे ख्याल से, अपने देश में यह एकमात्र ऐसी
साहित्यिक कृति है, जो पक्षी-प्रेक्षण (Bird Watching) की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इस रचना का
विभिन्न भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए था, मगर नहीं हुआ। ऐसा क्यों? दरअसल, पूरे
उपन्यास में (तीनों खण्ड मिलाकर) छोटी-बड़ी कुल 100 कविताएं भी हैं। यानि एक नजरिये
से, यह एक 'चम्पू काव्य' है। एक भाषा की उच्चस्तरीय कविताओं का दूसरी भाषा में भावानुवाद
लगभग असम्भव होता है; या फिर, कोई कवि ही यह काम कर सकता है। मैंने स्वयं कविताओं
के स्तर को देखते हुए इस उपन्यास के हिन्दी अनुवाद का इरादा एकबार के लिए छोड़ ही
दिया था। बस यह टीस मेरे दिलो-दिमाग से निकल नहीं पा रही थी कि इतनी विलक्षण रचना
से मैं दूसरों को परिचित नहीं करा पा रहा हूँ! अन्त में, ज्ञान मिला कि क्यों न
कविताओं की सिर्फ शुरुआती दो-चार पंक्तियों का अनुवाद किया जाय और (ब्रैकेट में)
यह लिख दिया जाय कि मूल कविता फलां पंक्तियों की है? इससे न तो उपन्यास के कथानक
पर असर पड़ता है, न ही पक्षी-परिचय पर। बदले में, अपनी ओर से मैंने हिन्दी अनुवाद
में कुछ नया जोड़ दिया। वह है- प्रत्येक पृष्ठ पर एक चिड़िये की तस्वीर, जिसका जिक्र
उपन्यास में आ रहा है।
...और इस तरह 'डाना' के प्रथम खण्ड का हिन्दी अनुवाद पूरा हो गया।
इसके मुद्रित एवं आभासी (eBook) संस्करण पोथी डॉट कॉम पर उपलब्ध हैं। यथाशीघ्र
दूसरे खण्ड के अनुवाद का काम शुरु किया जायेगा।
यहाँ मैं उक्त पुस्तक की एक मानद (Complimentary) प्रति सभी साहित्यरसिकों एवं पक्षीप्रेमियों को समर्पित कर रहा
हूँ। यह प्रति मेरे गूगल ड्राइव पर है। आप इसे पूरा पढ़ सकते हैं- हाँ, डाउनलोड नहीं कर सकते। लिंक यहाँ है।
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"Pothi.Com" पर पुस्तक के लिंक (कृपया तस्वीरों पर क्लिक करें):
ई'बुक संस्करण |
मुद्रित पुस्तक संस्करण |
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वाह आज पहली ही बार ये कमाल की जानकारी आपकी पोस्ट से मिली। इस देश की यही विडंबना है। इतना महत्वपूर्ण काम भी लोगों की नज़र तक में नहीं है। साझा करने के लिए शुक्रिया जयदीप भाई
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