शायद 2003 की बात होगी। हम छुट्टी लेकर घर आये
थे कि अपने घर के पीछे की तरफ परती जगह पर अपने लिए अलग से एक बसेरा बनवा लें,
क्योंकि दो साल बाद ही हमें सेवा से अवकाश लेना था।
जो राजमिस्त्री आया, वह काम के लिए राजी तो हुआ,
लेकिन उसका कहना था कि वह अगले महीने से काम शुरु करेगा। हमने जानना चाहा क्यों,
तो पता चला कि यह चैत का महीना है और इस महीने नये घर के निर्माण का काम शुरु नहीं
होता। काम शुरु होगा बैशाख में।
हमने कहा- हम तो छुट्टी लेकर आये हैं, तो हमें
तो काम शुरु करवाना ही होगा। वह नहीं माना। तब माँ ने कहा कि पड़ोस के मुहल्ले में
"शहीद" नाम का एक राजमिस्त्री है, उसको कहो। हम गये उस
मुहल्ले में। पता चला, वह अब दूर के एक मुहल्ले में रहता है। वहाँ जाकर बताये। वह
आया। जगह देखी उसने। राजी हुआ। हमने पूछा- कब से काम शुरु होगा। उसका कहना था- कल
से। ...और अगले दिन से काम शुरु हो गया।
हमारा यह छोटा-सा बसेरा उसी के हाथों से बना हुआ है।
हमारा यह छोटा-सा बसेरा उसी के हाथों से बना हुआ है।
धीरे-धीरे हमें पता चला कि वह बहुत-बहुत-बहुत
काबिल राजमिस्त्री है। शरीर में ताकत बहुत, मजदूरों पर नियंत्रण बहुत बढ़िया, बहुत
तेज दिमाग, कभी मालिक का नुकसान न होने दे, और भी बहुत सारे गुण थे उसमें। जल्दी
ही हमारे घर से उसका पारिवारिक रिश्ता बन गया। स्वभाव हँसमुख होने के कारण जैसे ही
वह घर में प्रवेश करता, एक रौनक-सी आ जाती थी। घर में सबसे- माँ-पिताजी, चाची से
भी वह बातचीत करता था। भैया का तो वह करीबी दोस्त था।
बाद में पता चला कि वह टाईल्स का काम करता है,
प्लम्बिंग का भी काम करता है और भी बहुत कुछ। ऐसा हो गया था कि किसी भी तरह का काम
हो घर में- उसको एकबार फोन किया जाता था और ज्यादातर मामलों में वह काम कर देता था
या करवा देता था। हमारी बातचीत बँगला में होती थी- हम उसे "आप" सम्बोधित
करते थे और उसे "शहीद-दा" कहते थे। बदले में वह भी हमें
"मोनू-दा" ही कहता था और श्रीमतीजी को "भौजाई" (भाभी)।
2017 में जब हमारा 'रतनपुर प्रोजेक्ट'
(व्यवसायिक भवन) शुरु हुआ, तो उसी ने शुरु किया। बाद में बेशक, उसके भाँजे अनीस और
एक दूसरे सहयोगी रहीम ने काम सम्भाला, पर शुरुआत उसी ने की थी। ईद-बकरीद में उसके
घर से हमारे यहाँ कुछ न कुछ आता था। हमारी भी कोशिश होती थी कि होली-दिवाली में
उसका मुँह मीठा करवाया जा सके।
इस बीच उसे कई बीमारियों ने घेर लिया। काफी ईलाज
चला। करीब महीने भर पहले हमने उसे पूरी तरह फिट देखा। हमें अच्छा लगा। कुछ कारणों
से हमारा रतनपुर प्रोजेक्ट रुका हुआ है। हमने सोचा, जब दुबारा काम शुरु होगा, तो
उसी से कुछ खास काम करवाया जायेगा। कुछ नया और खास काम करने में उसे महारत हासिल
थी। हाँ, हमारे यहाँ एक बाथ-टब बनाने से वह पीछे हट गया, लेकिन चाहता, तो तस्वीर
देखकर बना सकता था। खैर, रतनपुर प्रोजेक्ट में उससे हमें फौव्वारा बनवाना था।
मगर सब खत्म हो गया। कल- 23 जनवरी की सुबह यह
अशुभ खबर आयी कि शहीद मिस्त्री नहीं रहा... । यकीन करना मुश्किल था, मगर यह हुआ। हमदोनों
उसके घर गये अन्तिम दर्शन के लिए।
उसके परिजनों और उसके शागिर्दों को ईश्वर यह आघात सहने लायक ताकत
दे और उसकी आत्मा को शान्ति मिले।
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पुनश्च:
अल्बम से शहीद की एक तस्वीर मिली-
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पुनश्च:
अल्बम से शहीद की एक तस्वीर मिली-
शहीद बीच में है (उसके दाहिने 4 और बाँये 2 मजदूर हैं) तस्वीर में- घर के लिए पहले खम्भे की नींव खोदी जा रही है. |
इसमें शहीद की जगह पर हम खड़े हैं, मतलब तस्वीर शहीद ने खींची होगी. |
निर्माणाधीन मकान. स्कूल ड्रेस में अभिमन्यु है और छत पर शहीद किसी के साथ बैठा है.
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श्रद्धाँजलि।
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