रविवार, 30 जून 2019

215. जिन्दादिली

       हाल ही में फेसबुक पर एक विडियो देखा, जो सम्भवतः महाराष्ट्र के किसी कॉलेज के घरेलू कार्यक्रम का है। (हो सकता है कि यह विडियो वायरल हो और प्रायः सबने देख रखा हो।) विडियो में एक नौजवान छात्र फिल्मी गाने- 'तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ' पर नृत्य कर रहा है। जिस नजाकत, जिस नफासत के साथ वह लड़का डान्स कर रहा है, वह तो काबिले-तारीफ है ही; वह जिस शिष्टता और विनम्रता के साथ अपनी शिक्षिकाओं को नृत्य में शामिल करता है, वह ज्यादा काबिले-तारीफ है। व्यक्तिगत रुप से हम उसके सुसभ्य और सुसंस्कृत आचरण से मुग्ध हो गये!
       खैर, तो इस विडियो को देखने के बाद मन में क्या विचार आता है? सबकी अपनी-अपनी सोच होगी। मेरे मन में जो विचार कौंधा, वह था-
       "ज़िन्दगी ज़िन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं!"
       दूसरी बात, जो मन में आयी वह यह थी कि पढ़ाई-लिखाई और करियर-वरियर की चिन्ता अपनी जगह है, "जवानी" में कुछ अल्हड़पन, कुछ बेफिक्री, कुछ मस्तमौलापन तो होना ही चाहिए! वर्ना फर्क क्या रह जायेगा एक तनावग्रस्त अधेड़ या खड़ूस बूढ़े और एक नौजवान में! 
        युट्युब पर उस विडियो का लिंक- https://youtu.be/5a-06VP7XsE 

 
        ***
       बात जब जिन्दादिली की चली, तो याद आया कि क्या मौज-मस्ती, बेफिक्री ही जिन्दादिली है? मेरे ख्याल से, नहीं। देश-दुनिया-समाज में घट रही घटनाओं के प्रति हमारी सजगता और खास तौर पर हमारी "पक्षधरता" निर्धारित करती है कि हम वाकई "जिन्दा" हैं या नहीं। मसलन, हम जंगल उजाड़ कर कल-कारखाने या खान बनाये जाने के पक्ष में हैं, या हम जंगलों में रहने वाले पशु-पक्षियों, वनवासियों के पक्ष में हैं? दुनिया की ज्यादातर धन-सम्पत्ति कुछ मुट्ठियों में सिमटती जा रही है- तो क्या हम उन पूँजीपतियों के पक्ष में हैं, या उन आम लोगों के पक्ष में हैं, जिनका शोषण हो रहा है?
       हम तो नौजवानों से यही अपील करेंगे कि वे जवानी के दिनों में ही अपना "पक्ष" तैयार कर लें- कि हर हाल में वे कमजोरों, शोषितों, वंचितों के पक्ष में खड़े रहेंगे! भारतीय होने के नाते हर नौजवान को भगत सिंह के विचारों से प्रेरणा लेना चाहिए और शोषण, दोहन, अत्याचार से रहित देश-दुनिया-समाज के निर्माण के लिए कुछ सोच-विचार करना चाहिए। समय आने पर उन्हें अपने विचारों को धरातल पर उतारने का मौका जरुर मिलेगा।
       इस सन्दर्भ में एक और विडियो देखा जाय- कुछ दिनों पहले फेसबुक पर ही यह दिखा था हमें। यह विडियो भारत के उस भू-भाग से आया है, जिसे बीते सात दशकों से 'पाकिस्तान' कहा जा रहा है! जी हाँ, यह विडियो पाकिस्तान के लाहौर शहर के "भगत सिंह चौक" से है, जहाँ कुछ नौजवान प्रदर्शन कर रहे हैं।
जवानी के दिनों में सिर्फ फिल्मी गानों पर थिरकना ही काफी नहीं- कभी-कभार चौक-चौराहों पर ऐसे प्रदर्शन भी करने चाहिए... तब जाकर पता चलेगा कि आप वाकई "जिन्दा" हैं, आपके सीने के अन्दर एक "धड़कता हुआ दिल" है, यानि कि आप "जिन्दादिल" हैं! 
फेसबुक पर विडियो का लिंक- https://www.facebook.com/salik2faridi/videos/2504323006279893/
(तस्वीर में भी लिंक जोड़ा हुआ है)

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       खैर, एक बार फिर पहले वाले विडियो का जिक्र। इस विडियो ने हमें उस विडियो की याद दिला दी, जिसे श्रीमतीजी ने शूट किया था और जिसमें हम खुद थिरक रहे थे। हमें नाचना-गाना नहीं आता, पर क्या है कि हम किशोरावस्था के दिनों से ही शैलेन्द्र सिंह की आवाज के कायल रहे हैं। बीते जाड़े का यह विडियो है, हमने शैलेन्द्र सिंह के एक गाने पर थिरकना शुरु कर दिया था और श्रीमतीजी ने विडियो बना लिया था।
       (युट्युब पर विडियो का लिंक यहाँ है।)
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