साहेबगंज हमारे जिले
का भी नाम है और उस शहर का भी नाम है, जहाँ हमारा जिला मुख्यालय है। यह विडियो हमने आज ही साहेबगंज रेलवे स्टेशन
के नये बने फुट ओवर ब्रिज से बनाया है। विडियो के अन्त में आपको एक वाष्प इंजन
दिखायी पड़ेगा, जिसे अब उठा कर स्टेशन के सामने प्राँगण में स्थापित किया जायेगा। इस
वाष्प इंजन का कोई नाम है या नहीं, पता नहीं; सामने स्थापित करते वक्त भी इसे कोई
नाम दिया जायेगा या नहीं- नहीं पता, पर हम इसे नाम देना चाहेंगे-
"कृष्णसुन्दरी"! जहाँ तक हमें याद है, पहले बाकायदे रेल इंजनों के नाम
हुआ करते थे। (बताते चलें कि इस इंजन पर 'कृष्णसुन्दरी' शीर्षक से ही एक आलेख हम
इस ब्लॉग पर पहले कभी लिख चुके हैं।)
हमने
ऊपर 'नये बने फुट ओवर ब्रिज' जिक्र किया, तो बता दें कि पहले साहेबगंज में जो फुट
ओवर ब्रिज इस्तेमाल में था, वह अँग्रेजों के जमाने का था और उसकी एक तरफ की
सीढ़ियाँ लकड़ी की थीं। बेशक, वह पुराना ब्रिज अब भी कायम है, पर उस पर आवागमन रोक
दिया गया है। यह ब्रिज कितना पुराना होगा, इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता
है कि यहाँ के रेल कैम्पस में स्थित रेलवे हाई स्कूल की स्थापना 1878 में हुई थी।
(स्कूल के बोर्ड पर लिखा देखा।) 1878 में अगर किसी रेल-कैम्पस में हाई स्कूल की
जरुरत पड़ गयी, तो सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि रेल-लाईन बिछाने का काम यहाँ
1850 के आस-पास ही शुरु हो गया होगा। यही कारण है कि हम अपने इलाके की इस रेल-व्यवस्था
को भारत की पहली रेल-व्यवस्था होने का दावा करते हैं। रुड़की
से पिरान कलियर के बीच पहली 'मालगाड़ी' वर्ष 1851 में और मुम्बई से थाने के बीच पहली 'सवारी' रेलगाड़ी
वर्ष 1853 में इसलिए चल गयी, क्योंकि इन दोनों रेल-पटरियों की दूरी बहुत ही कम थी।
इनके मुकाबले हमारे इलाके की रेल-पटरियों की दूरी बहुत ज्यादा थी- करीबन 300
किलोमीटर। दरअसल (जहाँ तक मेरा अनुमान है) अँग्रेज बँगाल प्रान्त की पुरानी
राजधानी "राजमहल" (जो कि एक अन्तर्देशीय बन्दरगाह भी था) को अपनी नयी
राजधानी "कोलकाता" से जोड़ना चाहते थे। भारत में "पहली" रेल
योजना यही बनी होगी, मगर दूरी ज्यादा होने के कारण यहाँ पटरियाँ बिछाने में समय
ज्यादा लग गया, रेलगाड़ी चलाने में देर हो गयी और इस बीच रूड़की-पिरान कलियर और मुम्बई-थाने
में रेलगाड़ियाँ चल गयीं!
***
खैर,
साहेबगंज के प्लेटफार्म पर ही हमने एक विडियो और बनाया- इसे भी देखिये। इसमें
मालगाड़ी चल रही है, जिसमें कोयला लदा है। हमारे झारखण्ड का कोयला। रोज दर्जनों ऐसी
मालगाड़ियाँ कोयला लेकर दूसरे राज्यों में जाती होंगी। देश भर के दर्जनों ताप
विद्युत गृह इस कोयले से संचालित होते होंगे। उन विद्युत गृहों से पैदा होने वाली
बिजली से दर्जनों शहर रात भर जगमगाते होंगे.... और इधर हम झारखण्ड वासी बिजली के
लिए तरसते रह जाते हैं। बँगला कवि सुकान्तो भटाचार्य की एक कविता की पंक्तियाँ
हैं-
"मैं
मानो वही रोशनी वाला हूँ,
जो
सन्ध्या में राजपथों पर बत्तियाँ जलाया करता है
हालाँकि
अपने ही घर में नहीं है जिसकी-
बत्ती
जलाने की सामर्थ्य,
अपने
ही घर में जमा रहता है दुःसह अन्धकार।"
ये पंक्तियाँ हम पर सटीक बैठती हैं। पंजाब- जहाँ
जमीन के नीचे एक किलो भी कोयला नहीं है- में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत लगभग 1,500
किलोवाट प्रतिघण्टा (KWH) है; वहीं कोयले के भण्डार वाले हमारे झारखण्ड में प्रति व्यक्ति
बिजली की खपत 550 के लगभग है। (कहने की जरुरत नहीं, इस मुद्दे पर भी दो-एक आलेख मेरे
इस ब्लॉग पर हैं।)
***
एक
और बात। अभी हमने देखा कि साहेबगंज स्टेशन की दीवारों पर बड़ी-बड़ी चित्रकारी की हुई
है। बता दें कि यह बँगाल की संस्कृति है। वहाँ के स्टेशनों पर कलाकारों को भरपूर
मौका दिया जाता है- अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का। बेशक, साहेबगंज वाला
चित्रकार भी बँगाली ही है- एक कोने में नाम लिखा दिखा, मगर बधाई तो साहेबगंज
स्टेशन के प्रबन्धक महोदय को देना पड़ेगा। हाँ, थोड़ी-सी चित्रकारी पड़ोसी स्टेशन
सकरीगली में भी है। हम इन चित्रकारियों की तस्वीरें लेना भूल गये।
अब
कलाकारी की बात चली है, तो एक तस्वीर तो यहाँ साझा कर ही दें। तस्वीर साहेबगंज
जिला मुख्यालय की है। एक कलाकार ने दीवार भगवान शंकर और गंगा माता की बहुत ही
सुन्दर और आकर्षक प्रतिमायें उकेरी हैं। बेशक, एक बधाई तो उपायुक्त महोदय को भी
बनती है।
जहाँ
तक कलाकारों को बधाई देने की बात है- उन्हें हम हृदय के अन्तःस्थल से बधाई देते
हैं।
***
अन्त में, विडियो में आप देखेंगे कि मौसम
बरसात-जैसा है। यह चक्रवातीय तूफान "फानी" का असर है। इस तूफान ने उड़ीसा
में कहर ढा दिया है। कल हमारे यहाँ भी वर्षा हुई। शाम से तो ऐसी वर्षा (मूसलाधार
नहीं, फुहार- जिसे "झिंसी" या बोलचाल में "फिसिर-फिसिर" कहते
हैं इधर) शुरु हुई कि रात भर बरसने के बाद सुबह 9-10 बजे तक पाने बरसते ही रहा।
बाद में मौसम सुहाना हो गया। दिन ढलते समय थोड़ी धूप उगी। अभी- शाम पौने छह बजे जब
हम घर में यह टाईप कर रहे हैं, बाहर कोयलों की तेज कलरव सुनायी पड़ रही है। लगता
है, सुहाने मौसम से वे कुछ ज्यादा ही मस्ती में आ गये हैं...
इति।
*****
ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को विश्व हास्य दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/05/2019 की बुलेटिन, " विश्व हास्य दिवस की हार्दिक शुभकामनायें - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !