जगप्रभा

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रविवार, 21 सितंबर 2014

121. "फेलू'दा" के प्रकाशन में देरी...


       फेलू'दा के पहले कारनामे का हिन्दी अनुवाद तैयार है, कवर जयचाँद ने बना दिया है, सम्बन्धित सरकारी विभाग से कवर को ISBN भी हाल में मिल गया है। फिर भी, इसे टाईप करके पूरा करने में मन नहीं लग रहा है। क्यों भला? क्योंकि सन्दीप राय साहब (सत्यजीत राय के सुपुत्र) से अभी तक अनुवाद की अनुमति नहीं मिली है। (समय की कमी कोई बड़ी बात नहीं है। एक-दो रविवार को ही टाइपिंग का काम पूरा कर सकता हूँ, बाकी डिजायनिंग अभिमन्यु कर ही देगा।) पोथी डॉट के संचालकों से भी बात हुई- वे "पॉकेट बुक" साईज की शुरुआत तो नहीं कर सकते (जैसा कि हमारे जमाने में "राजन-इकबाल" सीरीज के उपन्यास हुआ करते थे), मगर 5" गुणा 7" का साईज दे सकते हैं।
       कई दिनों से सोच रहा था कि आखिर उनका जवाब क्यों नहीं आ रहा है। क्या वे मेरे द्वारा भेजे गये "जंगल के फूल" और "नाज़-ए-हिन्द" को पढ़ने लगे हैं? इन्हें मैंने अपने अनुरोध के साथ ही भेजा है कि वे मेरी अनुवाद एवं लेखन क्षमता को तौल सकें- फिर चाहे वे "फेलू'दा" सीरीज के अनुवाद की अनुमति दें या न दें।
       आज क्या मन में हुआ- फेसबुक पर उनके पेज को खोला। खोलते ही समझ में आ गया कि उत्तर में देरी क्यों हो रही है! वे "बादशाही अँगूठी" की शूटिंग में व्यस्त हैं। यह फेलू'दा सीरीज के दूसरे नम्बर का उपन्यास है।
       शूटिंग की दूसरी तस्वीर देखकर मेरी आँखें फटी रह गयीं! उपन्यास में सत्यजीत राय ने जंगल के बीच जैसी झोपड़ी का रेखाचित्र बनाया है, ठीक वैसी ही झोपड़ी फिल्म की शूटिंग के लिए (वास्तव में) बनवायी गयी है! मैं यहाँ क्म्प्यूटर स्क्रीन तथा पुस्तक का पृष्ठ- दोनों की इकट्ठी तस्वीर पेश कर रहा हूँ- आप खुद ही देख लीजिये...

       (झोपड़ी से मैं अनुमान लगा रहा हूँ कि फिल्म के 'क्लाइमेक्स' की शूटिंग चल रही है। यानि अगले दो महीने में मुझे उनका उत्तर मिल सकता है... )


पुनश्च/16-10-2014: 

पुस्तक प्रकाशित हो गयी. देखने/मँगवाने के लिए यहाँ क्लिक किया जा सकता है. 

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