बचपन में जैसे ही हम कभी छींकते थे, आस-पास कहीं खड़ी हमारी बुआ या चाची या माँ बोल पड़ती थीं- “क्षैतन्जी!”
हम बच्चे कुछ समझते नहीं थे.
कुछ बड़े होने पर हमने पूछना शुरु किया- यह “क्षैतन्जी” क्या है?
जवाब मिलता- कहना चाहिए.
कुछ और बड़े होने पर हमने बहस करना शुरु कर दिया- क्यों कहना चाहिए? नहीं कहने से क्या होगा?
हमारी चाची या बुआ या माँ के पास इनका कोई जवाब नहीं होता था.
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वर्षों बीत जाते हैं.
हम कॉलेज में हैं.
हिन्दी के प्राध्यापक ‘अपभ्रंश’ के बारे में बता रहे हैं.
वे दो उदाहरण देते हैं- 1. “आनामासिधन” और 2. “क्षैतन्जी”
बच्चों का हाथ पकड़कर पहली बार स्लेट पर जो शब्द लिखवा जाता है, वह है- “आनामासिधन”. (हालाँकि हमारे इलाके में इसका प्रचलन नहीं है. वैसे, बँगला में इस अनुष्ठान को ‘हाते-खड़ी’ (हाथ में खड़िया) कहते हैं.)
हिन्दी के प्राध्यापक बताते हैं कि “ऊँ नमः सिद्धम” का अपभ्रंश है- “आनामासिधन”.
इसी प्रकार, “शतम् जीवः” का अपभ्रंश है- “क्षैतन्जी”.
हमें एक प्रश्न का उत्तर मिल जाता है कि “क्षैतन्जी” वास्तव में एक आशीर्वाद है- “सौ साल जीओ”.
मगर दूसरा प्रश्न अब भी अनुत्तरित है, कि छींकने के बाद ही यह आशीर्वाद क्यों?
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फिर वर्षों बीत जाते हैं.
कुछ रोज पहले अखबार में एक ‘बॉक्स’ समाचार पर नजर पड़ती है, जिसका आशय है- छींकते वक्त क्षण भर (Fraction of Second) के लिए हमारे हृदय की धड़कन रुक जाती है!
दूसरे प्रश्न का भी उत्तर मिल गया.
जब भी कोई- खासकर एक बच्चा- छींकता है, तो वास्तव में वह मरकर जीता है! इसलिए घर के बड़ों के मुँह से अनायास ही निकल पड़ता था- “सौ साल जीओ बच्चे, तुम अभी-अभी मृत्यु के मुँह से लौट कर आये हो.”
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आपने बहुत महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी। आपके द्वारा दी जानकारियाँ हिन्दी को और बेहतर से समझने के लिए आवश्यक होगीं। आपका धन्यवाद।
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