गुरुवार, 6 मई 2021

248. बुखार से राहत- एक अनुभव

       चिकित्सा से सम्बन्धित सलाह उसी को देनी चाहिए, जिसके पास इसका लाइसेन्स (किसी भी तरह का) हो, दूसरों को ऐसी कोशिश नहीं करनी चाहिए- इस सिद्धान्त के तहत मैं आज की इस पोस्ट को अब तक नहीं लिख रहा था, लेकिन देख रहा हूँ कि एक वायरस के संक्रमण से हाहाकार मचा हुआ है, जो कम होने का नाम नहीं ले रहा है, इसलिए इस पोस्ट को लिखने का फैसला किया, लेकिन निम्न दो चेतावनियों के साथ-

       1. अगर आप डॉ. विश्वरूप रॉयचौधरी को एक फ्रॉड मानते हैं और उनके नाम से भड़कते हैं, तो कृपया और आगे न पढ़ें। जबर्दस्ती पढ़ने के बाद नकारात्मक टिप्पणी तो न ही करें- उसे डीलिट कर दिया जायेगा।

       2. यह ब्लॉग एक ऑनलाईन डायरी के समान है, जो सार्वजनिक है और जिसमें मैं अपनी, अपनों की और अपने आस-पास की बातें कभी-कभार लिखता हूँ- दूसरा कोई उद्देश्य नहीं है। न मैं ज्ञान दे रहा हूँ, न कोई नुस्खा बता रहा हूँ, बस अपना एक अनुभाव दर्ज कर रहा हूँ।

       स्पष्ट हो गया?

       अब वह अनुभव-

 

       होली के अगले ही दिन श्रीमतीजी को शरीरदर्द के साथ बुखार आया, साथ में पेट में भी दर्द था। स्वाभाविक रूप से, मैंने यही सोचा कि होली के दिन ज्यादा भाग-दौड़, ज्यादा भींगने और यहाँ-वहाँ कुछ खा लेने से यह सब हुआ होगा। तो पड़ोस की दवा-दुकान से दो दिनों की दवा मैं ले आया। आराम हुआ, पर चौथे दिन भी श्रीमतीजी ने कहा कि बुखार है ही। मैं पारासिटामोल का एक टैबलेट शाम को ले आया और उन्हें देते हुए कहा कि रात सोने से पहले आधी टैबलेट खा लेना, ताकि नीन्द में खलल न पड़े। कल सुबह टेस्ट करवाया जायेगा। उन्होंने वही किया।

अगले दिन, यानि पाँचवें दिन भी उन्होंने बुखार के साथ शरीरदर्द की शिकायत की। मैंने कहा- अगर टेस्ट करवाने जाते हैं, तो दो ही बात हो सकती है- या तो टायफायड बताया जायेगा, या फिर कोरोना। टायफायड का चान्स ज्यादा है, क्योंकि यह हमारे इलाके में अभी फैला हुआ है और इसका बैक्ट्रिया शरीर में दो से तीन सप्ताह तक सक्रिय रहता है। पाँचवे दिन भी बुखार बने रहने से टायफायड का ही शक हो रहा है। हो सकता है, कोरोना हो, जो कि फ्लू के एक वायरस से फैलता है।

मैंने आगे कहा कि रोग फैलाने वाला चाहे बैक्ट्रिया हो, या वायरस- उसका क्या नाम है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, खान-पान में थोड़े-से बदलाव से इनके संक्रमण से स्वस्थ हुआ जा सकता है- रिस्क लेना है, या टेस्ट ही करवाना है। वे रिस्क लेने के लिए राजी हो गयीं- हालाँकि उन्हें लगा था कि पहला दिन तरल-पदार्थ पर रहना मुश्किल होगा। बता दूँ कि उन दिनों हमारे कस्बे में चारों तरफ बुखार फैला हुआ था, ज्यादातर क्लिनिक बन्द थे, बहुत-से लोगों के कोरोना-पोजेटिव होने की रिपोर्ट आ भी रही थी, दहशत फैली हुई थी, आपाधापी मची हुई थी, ज्यादातर लोग आस-पास से लेकर दूर-दराज के शहरों की तरफ भाग रहे थे और प्रायः रोज दो-एक के गुजर जाने की भी खबर आ रही थी।

खैर, तो छठे दिन से खान-पान वाली चिकित्सा शुरू हुई। पहला दिन वे तरल-आहार पर रहीं- मुसम्मी का रस और डाब का पानी पीकर- बेशक दिन भर में कई बार। अगले दिन इस तरल-आहार में दोपहर के वक्त सलाद जोड़ दिया गया- टमाटर और खीरे का। तीसरे दिन इन्हीं दोनों चीजों के साथ-साथ रात का सामान्य भोजन भी जोड़ दिया गया।

इसके अगले दिन (यानि होली के बाद से नवें दिन) भी उनका बुखार बना रहा। अब मैंने यह मान लिया कि यह टायफायड ही होगा। कोरोना होने से अब तक बुखार उतर जाना चाहिए था और आराम महसूस करना चाहिए था।

तो नवें दिन से खान-पान में ऐसा बदलाव किया गया- सुबह नाश्ते में फलों के रस के साथ-साथ फलों का भी सेवन। चावल या रोटी का भोजन दोपहर बारह बजे के बाद। मुसम्मी, सन्तरा, अनार, अंगूर, सेब, केला मैं लेकर आता था।

हाँ, तुलसी की पत्तियों की चाय कई बार चलती थी, उसी में लौंग आदि भी मिला दिये जाते थे।

यह क्रम चलता रहा- 21वें दिन वे स्वस्थ हुईं और 22वें दिन बिलकुल फिट! न कोई कमजोरी, न थकान- कुछ नहीं, बिलकुल पहले-जैसी।

 

यह नुस्खा हमने डॉ. विश्वरूप रॉयचौधरी के नुस्खे से अपनाया था।

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पोस्ट तो समाप्त हो गयी, लेकिन हो सकता है, कोई प्रश्न करना चाहे डॉ. रॉयचौधरी का नुस्खा कहाँ मिलेगा? तो यहाँ वे दो लिंक हैं, जिनसे हमने उपर्युक्त नुस्खा पाया-

 

विडियो डॉ.रॉयचौधरी- 1

 

विडियो डॉ. रॉयचौधरी- 2

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एक 'प्रसंगवश' भी जोड़ना उचित जान पड़ रहा है। मान लीजिए कि किसी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, तो हो सकता है कि वह कोरोना से तीन दिनों में न उबर पाये, तो ऐसे में चौथे-पाँचवे दिन उसे साँस लेने में तकलीफ हो सकती है। ऐसे में मैं सिर्फ यह जानकारी देना चाहूँगा कि जब "मेकेनिकल" वेण्टिलेटर का आविष्कार नहीं हुआ था, तब दुनिया भर में साँस के मरीजों को "प्रोन" वेण्टिलेशन दिया जाता था। यहाँ इससे सम्बन्धित मैं दो विडियो के लिंक दे रहा हूँ:  

 

विडियो- प्रोन वेण्टिलेशन- 1 (डॉ. अरविन्द कुमार, चेयरमैन, CCS, मेदान्ता)

 

विडियो- प्रोन वेण्टिलेशन- 2(डॉ. रॉयचौधरी)

 

इति।

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पुनश्च: 

ऊपर दो या तीन हफ्ते तक फलों के नाश्ते का जिक्र है। कहा गया है कि 12 बजे तक फल खाकर ही रहना है, उसके बाद भोजन करना है। यहाँ एक बात हम भूल गये थे- दरअसल, सुबह फलों के नाश्ते के साथ-साथ दोपहर एवं रात के खाने से पहले (ध्यान दें- खाने के साथ नहीं, खाने से पहले) सलाद भी खाना था। खैर, फायदा तो इसके बिना भी हो गया, पर इसे भी करना था। 


 

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