tag:blogger.com,1999:blog-8576654863220979026.post7037686131791303018..comments2023-12-01T08:37:08.077+05:30Comments on कभी-कभार: 43. "कलरव" के बहाने...जयदीप शेखरhttp://www.blogger.com/profile/18291254457561315778noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-8576654863220979026.post-63608828802137476572022-05-02T11:07:18.737+05:302022-05-02T11:07:18.737+05:30sundar hai
sundar hai<br />Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8576654863220979026.post-51184965046054096212019-12-25T23:26:00.831+05:302019-12-25T23:26:00.831+05:30 मैंने जब चौथी या पश्चिमी कक्षा में पढ़ रहे थे तो ... मैंने जब चौथी या पश्चिमी कक्षा में पढ़ रहे थे तो एक कविता मैंने पढ़ा था जो कि रामधारी सिंह दिनकर का है अभी वह बुक नहीं मिला है समय के अनुकूल बदल गया है मैं जवाब चाहूंगा कि अगर आपके पास में वह कविता है तो गूगल पर सेंड जरूर करेंगे रूपाAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/03876176653132635672noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8576654863220979026.post-51951922804503699752018-03-01T19:55:50.500+05:302018-03-01T19:55:50.500+05:30ऋतुएँ
सूरज तपता धरती जलती।
गरम हवा ज़ोरों से चलत...ऋतुएँ <br /><br />सूरज तपता धरती जलती। <br />गरम हवा ज़ोरों से चलती। <br />तन से बहुत पसीना बहता, <br />हाथ सभी के पंखा रहता। <br /><br />आ रे बादल! काल्रे बादल! <br />गरमी दूर भगा रे बादल! <br />रिमझिम बूँदें बरसा बादल! <br />झम-झम पानी बरसा बादल! <br /><br />लो घनघोर घटाएँ छाईं, <br />टप-टप-टप-टप बूँदें आईं। <br />बिजली चमक रही अब चम-चम, <br />लगा बरसने पानी झम-झम! <br /><br />लेकर अपने साथ दिवाली, <br />सरदी आई बड़ी निराली। <br />शाम सवेरे सरदी लगती, <br />पर स्वेटर से है वह भगती। <br /><br />सरदी जाती, गरमी आती, <br />रंग रंग के फूल खिलाती। <br />रंग-रँगीली होली आती, <br />सबके मन उमंग भर जाती। <br /><br />रात और दिन हुए बराबर, <br />सोते लोग निकलकर बाहर। <br />सरदी बिलकुल नहीं सताती, <br />सरदी जा<br />दीप जलाओ, दीप जलाओ, आज दिवाली रे . खुशी-खुशी सब हंसते आओ, आज दिवाली रे . मैं तो लूंगा खेल-खिलौने, तुम भी लेना भाई नाचो, गाओ, खुशी मनाओ, आज दिवाली आई . आज पटाखे खूब चलाओ आज दिवाली रे . दीप जलाओ, दीप जलाओ आज दिवाली रे . नए-नए मैं कपड़े पहनूं, खाऊं खूब मिठाई . हाथ जोड़कर पूजा कर लूं आज दिवाली आई . खाओ मित्रों, खूब मिठाई, आज दिवाली रे . दीप जलाओ, दीप जलाओ, आज दिवाली रे . आज दुकानें खूब सजी हैं घर भी जगमग करते . झिलमिल-झिलमिल दीप जले हैं कितने अच्छे लगते . आओ, नाचो, खुशी मनाओ, आज दिवाली रे . दीप जलाओ, दीप जलाओ, आज दिवाली रे .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8576654863220979026.post-33380921888821658962013-09-27T04:53:43.717+05:302013-09-27T04:53:43.717+05:30आपने जो हवा की ताजगी की बात कही है वह बहुत सही है....आपने जो हवा की ताजगी की बात कही है वह बहुत सही है. करीब १०-१५ वर्ष पहले तक वह ताजगी शहरों मैं भी मिलती थी पर अब नहीं है. बिलकुल नहीं. सबकुछ बदल रहा है, बहुत तेजी से.Akhilesh Sharmahttp://www.krishnamurari.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8576654863220979026.post-13328180086761587362013-09-27T04:50:06.627+05:302013-09-27T04:50:06.627+05:30बहुत दिनों बाद हिंदी पढ़ कर अच्छा लगा. मैं तीसरी चौ...बहुत दिनों बाद हिंदी पढ़ कर अच्छा लगा. मैं तीसरी चौथी कक्षा मैं पढ़ी हिंदी कविता "नहीं हुआ है अभी सवेरा पूरब की लाली पहचान" और "ख़ुशी मनाओ ख़ुशी मनाओ आज दिवाली रे" तथा "बड़े काम के ये जानवर" कवितायें ढूंढ रहा था पर नहीं मिलीं. यदि आपके पास हैं तो शेयर करें. Akhilesh Sharmahttp://www.ibw.co.innoreply@blogger.com