गुरुवार, 17 मार्च 2022

267. 'अर्जुन कुल्फी'

 


       पहली तस्वीर में अर्जुन जी हैं। इनकी कुल्फी हमारे बरहरवा में प्रसिद्ध है। सबसे बड़ी बात है कि इन्होंने कभी कुल्फी की गुणवत्ता- क्वालिटी से समझौता नहीं किया है। इलाके के आबाल-वृद्ध-वनिता सभी इनकी कुल्फी को पसन्द करते हैं और आज तक किसी को भी शिकायत का मौका इन्होंने नहीं दिया है। मेरे ख्याल से, तीस-चालीस सालों से वे कुल्फी बना रहे हैं और आज "अर्जुन कुल्फी" एक विश्वनीय ब्राण्ड के रूप में जाना जाता है हमारे बरहरवा में।

       पाँच साल पहले जब हमलोग माँ-पिताजी की हीरक जयन्ती- डायमण्ड जुबली मना रहे थे, तब सुबह घर में हवन हुआ था और शाम के समय छोटे-से प्रीतिभोज का आयोजन हुआ था। मई का महीना था, सबका कहना था कि आइस्क्रीम की व्यवस्था होनी चाहिए। तब हमने आइस्क्रीम की व्यवस्था करने के बजाय अर्जुन जी से कहा था कि वे शाम को अपना ठेला लेकर ही हमारे घर आ जायें और मेहमानों को कुल्फी खिला दें- जो जितना खाना चाहे। ऐसा ही हुआ था।  

       एक और बात- होली के दिन वे "भांग वाली कुल्फी" भी बनाते थे- अब बनाते हैं कि नहीं, पता नहीं- पूछना भूल गये। हो सकता है कल-परसों उनके पास भांग वाली होली स्पेशल कुल्फी भी मिले...

       (भांग का नशा बहुत बुरा होता है- सही बात है, पर जिन्दगी में एक बार अगर होली के दिन भांग का नशा नहीं चढ़ा, तो हमें नहीं लगता कि जिन्दगी को "सम्पूर्ण" माना जाना चाहिए। बस पूरी जिन्दगी में एक बार, दुबारा आजमाना मूर्खता होगी।)

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       दूसरी तस्वीर में जो नौजवान "अर्जुन कुल्फी" खा रहा है, वह अभिमन्यु है। पूरा नाम- अभिमन्यु शेखर।

       जहाँ आजकल के नौजवान कानों के ऊपर महीन बाल रखते हैं- मतलब ऐसा फैशन चला हुआ है, वहीं साहबजादे कानों के ऊपर लम्बे बाल रखना पसन्द करते हैं; 1970 के दशक में विनोद मेहरा, फारूक शेख-जैसे अभिनेता जैसे बाल रखा करते थे। (हालाँकि वह इन अभिनेताओं के नाम से भी परिचित नहीं होगा शायद।)

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गुरुवार, 10 मार्च 2022

खजुराहो की प्रस्तर प्रतिमाओं के रेखाचित्र

घर के किसी कोने में रखा एक पैकेट मिला, जिसमें कुछ कतरन वगैरह रखे हुए थे। 
उसी में 15 रेखाचित्र भी मिले। 
ये रेखाचित्र हमने करीब 30 साल पहले बनाये थे। तब हम ग्वालियर में थे और वहाँ से खजुराहो घूमने जाने की योजना बना रहे थे। लाइब्रेरी से खजुराहो पर एक मोटी-सी अँग्रेजी पुस्तक उठा लाये- जानकारी हासिल करने के लिए। उसमें बहुत सारी प्रस्तर प्रतिमाओं के छायाचित्र भी थे। लगे हाथ हमने छायाचित्रों को देख-देख कर इन रेखाचित्रों को बनाया था। 
रेखाचित्रों पर कुछ नम्बर भी पड़े हुए नजर आये, जिससे हम अनुमान लगा रहे हैं कि हमने शायद 50 के लगभग चित्र बनाये थे। 
अन्त में- सफाई दे दी जाय कि हमने न तो विधिवत चित्रकारी सीखी है और न ही कभी अभ्यास किया है। बस एक नैसर्गिक गुण है कि थोड़ी-बहुत चित्रकारी कर सकते हैं।