बुधवार, 24 जून 2020

237. गुड्डू रंगीला ग्रिलवाले 'ओल-झोल'


 

ये हैं जनाब गुड्डू रंगीला ग्रिलवाले 'ओल-झोल'
      
       गुड्डू इनका नाम है;

       रंगीला इनका मिजाज है;

       ग्रिल का काम इनका पेशा है; और-

       'ओल-झोल' इनका तकिया-कलाम है।

       इनके फोन में जो 'कॉलर-ट्युन' है, वह खतरनाक है! खासकर, विवाहित लोगों के लिए। जब आप इन जनाब को फोन कीजियेगा, तब आपके फोन पर एक महिला की मीठी आवाज कुछ इस प्रकार से सुनायी पड़ेगी-
       "हैलो... क्या, मैं कौन?... अच्छा, तो अब मेरी आवाज भी नहीं पहचान नहीं रहे... शादी से पहले तो घण्टों बातें करते थे... तब समय भी बहुत मिलता था... अब टाईम ही नहीं मिलता... और पहचानते भी नहीं... "
       अगर आपके फोन का स्पीकर ऑन है और यह आवाज आपकी श्रीमतीजी के कानों तक पहुँच गयी, तब आशंकित खतरे का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है...
       *
       जब तकिया-कलाम का जिक्र हो ही गया है, तो बात को कुछ दूर तलक ले ही जाया जाय। हमारा एक दोस्त है- कुन्दन, वह 'ओल-झोल' के स्थान पर 'हाबि-जाबि' और 'नौ-सतरह' तकिया-कलाम का इस्तेमाल करता है।
       'ओल-झोल', 'हाबि-जाबि', 'नौ-सतरह' का एक पर्यायवाची है- 'लन्द-फन्द'। वायु सेना स्थल, बिहटा के दिनों में एक सहकर्मी सार्जेण्ट को देखा था इस तकिया-कलाम का कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल करते हुए। हम बिहार-झारखण्ड वालों के लिए यह मामूली मुहावरा था, मगर वहाँ तो कई राज्यों के लोग थे। तो 'लन्द-फन्द' मुहावरा उनके लिए काफी मनोरंजक था। ऐसा हो गया था कि कुछ उन्हें 'सार्जेण्ट लन्द-फन्द' ही कहने लगे थे हास्य-विनोद में।
                एस.बी.आई. के दिनों में एक साहब मिले थे, जो उपर्युक्त तकिया-कलाम का विस्तृत रूप प्रयोग करते थे- 'लन्द फन्द शकरकन्द'।
       ऐसे ही, वायु सेना स्थल, तेजपुर में एक सार्जेण्ट साहब मिले थे, जिनका तकिया-कलाम था- 'बड़ा कष्ट है'। इस 'बड़ा कष्ट है' तकिया-कलाम का वे अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग टोन में इस्तेमाल करते थे। यानि इस एक ही तकिया-कलाम से वे कई तरह के मनोभाव- खुशी से लेकर नाखुशी तक- प्रकट कर लिया करते थे।
       एक ऐसा तकिया-कलाम भी सुनने को मिला था, जो हमें काफी मजेदार लगा था, वह था- 'मुकदमा'। मास्टर वारण्ट अफसर साहब के टेबल पर जब कई सारे फाईल इकट्ठे हो जाया करते थे दस्तखत के लिए, तो दस्तखत करते वक्त वे अक्सर पूछा करते थे- 'हाँ, ये वाला मुकदमा किसका है भाई?' (यानि इस फाईल को किसने पुट-अप किया है।)
       इति।
***

236. जामुन का पेड़


        घर के बगल के खाली प्लॉट पर जामुन का एक बड़ा-सा पेड़ है। हर साल बरसात में बच्चे यहाँ जामुन तोड़ने आते हैं। बरसात में यह जगह जंगल-झाड़ियों से भर जाती है, इसलिए हम खुद कभी नहीं गये थे जामुन तोड़ने। एक तरह से, यह सुरक्षित नहीं है।
       आज क्या मन में आया, जामुन तोड़ने चले गये। उसी के कुछ चित्र:
      
विडियो- 1: हमारा घर और जामुन का पेड़
https://youtu.be/kP_Lwx1aKZI

       विडियो- 1A: हमारा घर और जामुन का पेड़
https://youtu.be/LR46tuhrgC0

                विडियो- 2: जामुन के पेड़ की ओर बढ़ते हुए
https://youtu.be/dTt4of4anBY

       विडियो- 3: जामुन के पेड़ की स्थिति 
https://youtu.be/VRwE1PHfeOw

       चित्र- 4: एक पुरानी दीवार पर चढ़कर पके जामुनों तक पहुँच ही गये

       विडियो- 5: ...तो इतने जामुन तोड़े आज हमने
https://youtu.be/iGt4JtAUzl4

       चित्र- 6: एक तितली, ऐसी बहुत-सी तितलियाँ उड़ रही थीं वहाँ

       पुनश्च: यह खाली जगह श्री जयप्रकाश चौरासिया जी और उनके भाई की है। उम्मीद है, जब कभी यहाँ निर्माण-कार्य होगा, जामुन के इस विशाल पेड़ को "जीवनदान" दिया जायेगा...
***

सोमवार, 22 जून 2020

235. नौपाड़ा झील




       जयचाँद अक्सर एक झील का जिक्र करता था। नौपाड़ा गाँव में उसकी दीदी का घर है, वहीं है यह झील। हम समझते थे कि वह बंगाल के किसी गाँव की बात करता है। बाद में पता चला कि वह गाँव हमारे कस्बे के आस-पास का ही है- 15 किलोमीटर दूर।
       कई दिनों से बात हो रही थी कि वहाँ चला जाय। कल जाना हो ही गया- ऐन सूर्य-ग्रहण के दिन।
       जब हमलोग केलाबाड़ी और आतापुर होते हुए नौपाड़ा गाँव की ओर चले, तब आकाश में बादल होते हुए भी चटक धूप थी और गर्मी भी थी, लेकिन जैसे ही हम गाँव के सीमाने पर पहुँचे, आकाश के एक कोने में वर्षा वाले काले बादल नजर आने लगे। जयचाँद की दीदी के घर तक पहुँचते-पहुँचते वर्षा शुरू हो गयी। घण्टे भर पानी बरसा। वर्षा थमने पर हम झील की तरफ गये, तब बदली छायी हुई थी।
       घण्टे भर झील में नौका-विहार करके जब हम वापस दीदी के घर पहुँचे, तब चटक धूप निकली। 
       वापसी में जब हम अपने बरहरवा की सीमा पर पहुँचे, तब फिर फुहार पड़ने लगी।
       उसी नौका-विहार की कुछ तस्वीरें और चलचित्र प्रस्तुत है-  
रास्ते में एक तालाब पड़ा, जो कमल के फूलों से भरा हुआ था।

गाँव का एक सामान्य दृश्य।

क्षितिज पर राजमहल की पहाड़ियाँ।

गाँवों में ऐसे कच्चे मकान अब कम ही रह गये हैं- यह भी जर्जर हो रहा है।

गाँव की ओर... ।

इमली की घनी छाँव।

झील पर नौका-विहार के लिए नाव निकालते हुए।

झील के बीच।

झील के बीच।

झील में खिले कमल के फूल।

नाव खेते हुए- 'शुभो'।

विडियो 1: झील में प्रवेश करते हुए

विडियो 2: झील के बीच

विडियो 3: झील के बीच